ये दाने गेहूँ के जो अभी बंद हैं मेरी मुट्ठी में थोड़ी-सी चुभन देकर हो जाते हैं शांत अगर जो ये होते मिट्टी के भीतर दिखला देते मुझे ताकत अपनी।
हिंदी समय में नरेश अग्रवाल की रचनाएँ